रंग लाल ही तो चाहा था मैने
रंग लाल ही तो चाहा था मैने
इक ज़रा रंग लाल ही तो चाहा था मैंने
नाम भी नहीं तेरा ,बस हक अपना ही तो मांगा था मैंने
आती ना कभी मैं तेरी राहों में
बस कदमो के निशान तेरे ,अपनी जमीन पर चाहा था मैने
दे देते अगर जो तुम मुझे अपने होने का अहसास
पूरी जिंदगी नहीं ,बस कुछ पल खास
थोड़ा जीना आसान हो जाता
थम थम कर चलती सांस में रवानी का अहसास हो जाता ।
कुछ भीगे पल ही तो चाहा था मैंने
मौसम एक पूरा नही, बस पहर एक पूरा ही तो चाहा था मैंने
अगर कभी जो तुम थाम के हाथ मेरा,
बारिश संग सफर कर लेते
कुछ गीले पल मुठ्ठी में संग मेरे भर लेते
तो जिंदगी मेरी आज इतनी सूखी ना होती
जमीन दिल की यूं बंजर ना होती ।
कभी जो पी होती चांदनी साथ मेरे
रात चांद संग होती बातें , और होते महकते अहसास,
अगर कभी हसरतों को मेरे तुमने थामा होता
कभी अपनी बाहों की पनाह में जो मुझे समेटा होता
तो आज मैं इतनी बिखरी ना होती
होती जिंदगी प्यासी मगर ,आस कोई अब भी गीली होती ।
बस , बस ये एक " अगर "
अगर आ कर गुजर गया होता
कुछ तुम्हारी अंगुलियों ने मेरी हथेलियों पे लिखा होता
थाम कर हाथ अपना ही , मैं स्पर्श तुम्हारा पा लेती
जी लेती मैं भी अपनी जिंदगी सुकून से
तन्हाइयों से अपनी मुझे कोई शिकायत न होती ।