रातें बीत जाती हैं
रातें बीत जाती हैं
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
यूँ तन्हाई में अक्सर मेरी, रातें बीत जाती हैं,
बिना मेरे कैसे उन्हें, सुकूँ से नींद आती है!
जमीं पे दो सितारों के, मिलन से है फ़लक रौशन,
हो गर सच्ची मुहब्बत फ़िर, ये काएनात मिलाती है।
नहीं बनना ज़रूरत जो, वक़्त के साथ बदल जाए,
मुझे आदत बना लो, उम्र भर जो साथ निभाती है।
मिरे दिल के सफ़े पे नाम, तेरा लिक्खे रखती हूँ,
उसे आँखों से छलके अश्क़ की बूंदे मिटाती हैं।
यूँ हर मिसरे में उल्फ़त, घोल देती है क़लम मेरी,
ग़ज़ल पढ़कर ये ना कहना, कि 'ज़ोया' तो जज़्बाती है।
16th April 2021 / Poem16
