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रास्ते का पेड़

रास्ते का पेड़

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अनगिनत मुसाफि र आए

इस रास्ते से

मैं उन्हें निहारता रहता

दूर से उनके पैरों की धूल

आसमां को छूती हुई-सी

प्रतीत होती ...

वे मेरी छांव में बैठ

कुछ देर विश्राम कर

फि र अपने पथ पर बढ जाते

कुछ पथिक तो ऐसे भी आये

जो आराम करने के बाद

मुझे ही नोचते-खसोटते

मेरे पास बावड़ी के

शीतल जल में प्यास बुझाते

कपड़े उतार मस्ती से नहाते

मैं देखता हूँ आज,

वास्तव में

मानव बना जानवर से जो

फि र से जानवर बनना चाहता है

तोडक़र मेरे डाल पात

सुख को भी ये पाना चाहता है।

हर जगह भभकता फि रता है

चैन नही ये पाता है।

छूना है आसमान

घर से निकल पडा हूँ

पथिक बन मैं

सुनसान रास्ते पर

चिलचिलाती धूप में

नंगे पाँव लिये

देखता हूँ कि

रास्ता सुनसान है

दूर-दूर तक केवल

विरान ही विरान है ।

रास्ते में सुनसान जंगल

जंगल में चुप्पी तोडता

पक्षियों का कलरव

गुंजन दशों दिशाओं से

वापिस लौटकर

वहीं में सिमट जाती

ऐसे में मन बैठा जाता

सोचता हूँ कि-----

वापिस चलूँ

मगर वापिस चलना भी

अब गंवारा लगता नही

चाहकर भी कदमों को

वापिस फेर सकता नही

तभी सुनसान रास्ते पर

जमीं हुई धूल पर

दिखते हैं अनगिणत

पद चिहन्------

शायद वे मेरे

उन पूर्वजों के हैं

जो मेहनत और लग्र से

इन रास्तों पर बढे

मंजिल यदि पानी है तो

बढना पडेगा अकेले मुझे

जिस तरह से

अनेक पथिकों ने

पाया अपनी मंजिल को

मुसीबतें झेलते हुए

फिर क्या धूप क्या सुनसान

क्या शहर, क्या विरान

मंजिल पर निगाहें टिकी

मंजिल हो गई आसान

पूर्वजों ने जो राहें पकडी

उसे पकड छूना है आसमान।


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