रास्ता
रास्ता
रास्ते जब बदलने थे तुम्हें ! तो रास्ते पर मिली ही क्यों ?
माना मिलना महज एक संयोग था !
मगर मिलकर आगे का रास्ता बनाई ही क्यों ?
आगे रास्ते किसी मोड़ पे मिल जाएंगें आपस में।
इनका आपस में कोई बैर नहीं !
मंजिल पाना ही इनका एक अकेला मकसद है।
तो फिर हम क्यों नहीं मिल सकते ?
मिलना बस संयोग न समझना।
जीवन का अंतिम योग समझना।
जब पथ को पथ से बैर नहीं !
तो ठान लें हम भी की हमारे बीच
दरार पैदा करने वालों की अब खैर नहीं !
साथ मिलकर क्यों न मंजिल प्राप्त करें
मुसाफिर हैं हम सब मृत्युलोक का
एक-दूसरे के आलोक में जीवन अपना आलोक करें।