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Ajay Singla

Classics

4.3  

Ajay Singla

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रामयण२३;भरत का वन को जाना

रामयण२३;भरत का वन को जाना

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मुनि बोले अयोध्या का तुम को

अब राजा बनना होगा

पिता की आज्ञा थी तुम्हारे

अब राज्याभिषेक करना होगा।


राज्य सारा दे देना उनको

जब राम आएँ वापिस वन से

कौशल्या ने भी यही कहा तो

भरत के ये मीठे वचन थे।


शिक्षा मुझ को दी, उचित है

सुनी धैर्य से सब तुम्हारी

संतोष नहीं हृदय में मेरे

अब विनती तुम सुनो हमारी।


सीता राम की करूँ चाकरी

इसमें ही कल्याण है मेरा

राम के बिना ये सब व्यर्थ है

उनके साथ ही मान है मेरा।


उनसे मिलने की आज्ञा मांगूं

मेरे कारण सबने दुःख पाया

श्री राम के दर्शन कर लूँ

मैं उनका बन के रहूं साया।


विनती सुनकर मान गए सब

निर्णय लिया वन जाने का

प्रजा सारी हर्षित हो गयी 

मौका प्रभु दर्शन पाने का।


मुनि, रानियां सेना सारी

रथों, घोड़ों पर चढ़ जावें 

भरत और शत्रुघ्न को

जाना वहां पैदल ही सुहावे।


तमसा नदी फिर गोमती तट पर 

श्रृंगवेरपुर पहुंचे दोनों भाई

खबर मिली निषादराज को

सोचें सेना क्या करने आई।


आया गुस्सा, फिर सोचा मन में

भरत से मिलकर पता लगाऊं

भरत कहें मुझे राम मिला दो

मनाकर मैं उन्हें वापिस लाऊं।


भरत राम का प्रेम देखकर

निषादराज भी रो पड़े थे

अगले दिन नावों में बैठकर

गंगा पार सब वो खड़े थे।


निषादराज रास्ता दिखाएं

उनके पीछे सब चल रहे थे

भरत कहें पैदल चलूँ मैं

राम भी तो पैदल गए थे।


प्रवेश किया प्रयागराज में

भरत के पैरों में थे छाले

पहुंचे तब भरद्वाज आश्रम

मुनी शिक्षा दें, उनको संभालें।


अपार प्रेम है राम के मन में

तुम को तो बहुत वो मानें

जो हुआ, दोष तुम्हारा कोई न

विधाता ने रचा जो वो ही जाने।


गुह के संग चले चित्रकूट को

भरत जी मिलने श्री रघुवर से

न पैरों में जूते उनके

न ही छाया उनके सर पे।


पृथ्वी कोमल हुई उनके लिए

मार्ग हो रहा अति कोमल

बादल छाया दे रहे हैं

हवा बह रही है अति सुंदर।


राम का दर्शन पाया जिन्होंने

परमानन्द के अधिकारी बने सब 

पर प्राप्त हुआ परमानन्द उनको

 भरत के दर्शन हुए उनको जब।


इंद्र सोचें भरत प्रभु को

घर में वापिस न ले आएं

बृहस्पति जी को विनती की

कुछ करो ऐसा, वो न मिल पाएं।


बृहस्पति बोले, अपराध राम का

करे कोई, वो माफ़ करें

पर उनके सेवक को छेड़ें

तो उनका क्रोध इन्साफ़ करे।


भला करेंगे प्रभु हम सब का

बस हम उनका ध्यान करें

इंद्र भी निश्चिंत हो गए

भरत का वो गुणगान करें।


यमुना तट पर भरत ने देखा

श्याम जल, प्रभु वर्ण समान

याद आए श्री रामचंद्र जी

उनमें बसती भरत की जान।


लोग वहां जो देखें भरत को

करें बड़ाई, करें प्रणाम

मनाने को प्रभु, राज्य छोड़ दिया

राम के भाई, राम समान।


निषाद ने भरत को दिखलाया वहां

कामदगिरि एक पर्वत सुंदर

निकट उसके एक नदी है बहती

निवास राम का, उसके तट पर।




 














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