रामायण ३९ ;वानर सेना प्रस्थान
रामायण ३९ ;वानर सेना प्रस्थान
सुग्रीव पूछें कुशल वानरों से
वानर कहें हनु काम कर दिया
प्राण बचा लिए सब वानरों के
सुग्रीव का मन हर्ष से भर गया |
रघुनाथ के पास चले सुग्रीव जी
स्फटिकशिला पर दोनों भाई
सुग्रीव को वहां पर आते देखा
मन में उनके प्रसन्नता छाई |
जाम्ब्बान बोलें हे नाथ, प्रभु
पवनसुत किया काम तुम्हारा
सारा चरित्र सुनाया प्रभु को कहें
सुफल हुआ अब जन्म हमारा |
हनुमान को गले लगाकर
प्रभु कहें, सीता कैसी है
विरह में आपके रहे कोई जैसे
हनुमान कहें, सीता वैसी है |
जानकी जी ने वचन कहे कुछ
मैं अब आपको वो सुनाऊँ
बोलीं किस अपराध से त्यागा
मैं तो उनको सदा ध्याऊँ |
बस एक ही अपराध है मेरा
वियोग में प्राण हैं नहीं त्यागे
हनुमान कहें, विपत्ति में सीता
अब न कह पाऊं इसके आगे |
कल्प समान बीते है एक पल
विनती करूं तुरंत ही जाइए
दुष्ट राक्षसों को मार कर
सीता को वापिस ले आईये |
नेत्रों में प्रभु के जल भर आया
कहें, कैसे उतारूँ ऋण मैं तेरा
हनुमान चरणों में पड़ गए
प्रभु ने सिरपर हाथ था फेरा |
निकट बिठाया हनुमान को
पूछा लंका जलाई कैसे
मैंने कुछ भी न किया बस
प्रताप से आपके, होता सब जैसे |
सुग्रीव को फिर बुलाया राम ने
कहा चलने की करो तैयारी
सेनापतियों के समूह आ गए
भालू, बन्दर, भीड़ लगी भारी |
राम कृपा से बल पाया सबने
वहां से फिर प्रस्थान किया
सीता जी को अच्छे शकुन हुए
उन्होंने ने भी ये सब जान लिया |
बन्दर रीछ चले जा रहे
बृक्षों पर्वतों को उठाएं
आकाशमार्ग से, कोई धरती से
गर्जन से राक्षस डर जाएं |
समुन्द्र तट पर पहुँच गए सब
फल खाने लग गए जहाँ तहां
डेरा डाला और बनायें
आगे की रणनीति वहां |
उधर जब से लंका जली थी
नगरवासी भयभीत थे सब
मंदोदरी तक बात ये पहुंची
व्याकुल हो गयीं वो भी तब |
रावण के पास गयीं, विनती की
विरोध राम का ना करो तुम
जब दूतों से ही राक्षस हैं डरते
राम क्रोध से अब डरो तुम |
अभिमानी रावण हंसा ये सुनकर
कहे स्त्री होती डरपोक है
पर उसकी स्त्री को ये शोभा न दे
जिससे डरते ये सारे लोक हैं |
कहकर ये चला गया सभा में
मंदोदरी को चिंता पति की
सभा में खबर ये रावण को मिली
सेना समुन्दर के पार खड़ी थी |
