रामायण २९;शूर्पणखा चरित्र
रामायण २९;शूर्पणखा चरित्र
शूर्पणखा बहन रावण की
उसी वन में विचरण करे
राम लक्ष्मण को देखे , सोचे
इनमें से कोई मुझे वरे।
सुंदर रूप बनाया अपना
राम के पास गयी, ये कहा
स्त्री पुरुष हम दोनों सुंदर
हम दोनों सुख से रहें यहाँ।
राम कहें सीता पत्नी मेरी
कुमार मेरा छोटा भाई
फिर प्रस्ताव विवाह का लेकर
लक्ष्मण के पास वो थी आयी।
लक्ष्मण कहें मैं राम का दास हूँ
सुख तुम न पाओगी यहां
प्रभु राम जी ही समर्थ हैं
लौट के तुम जाओ वहां।
राम के पास दोबारा गयी जब
राम ने फिर से लौटाया
बार बार दुत्कारे जाने से
क्रोध बहुत उसको आया।
लक्ष्मण कहें तुझको वरे वही
लाज शर्म न हो जिसको
भयंकर रूप तब धरा था उसने
घबराहट हो गयी सीता को।
राम ने था फिर किया इशारा
लक्ष्मण ने काटे नाक और कान
रक्त बह रहा, व्याकुल थी वो
चकनाचूर हुआ उसका मान।
खर दूषण के पास वो पहुंची
कहती, बनते हो तुम बहुत बली
दोनों चल दिए सेना लेकर
शूर्पणखा भी साथ चली।
राम ने लक्ष्मण को कहा कि
सीता को गुफा अंदर ले जाओ
राक्षसों की सेना आ रही
युद्ध ख़त्म हो, तभी वापस आओ।
सेना ने था राम को घेरा
बोलें जीत सको न हमें
मारेंगे न तुम्हे, अगर तुम
दे दोगे अपनी स्त्री हमें।
राम धनुष पर बाण चढ़ाएं
एक एक करके सबको मारें
खर,दूषण,त्रिशिरा समझ न पाए
डर से व्याकुल हो गए सारे।
कौतुक किया रघुनाथ ने सैनिक
राम को देखें सब तरफ वो
लड़कर मर गए आपस में ही
बस कुछ ही रह गए थे अब तो।
खर, दूषण, त्रिशिरा को मारा
मोक्ष दिया उन सब को प्रभु ने
शूर्पणखा भागी वहां से
पहुंची रावण की सभा में।
भड़काया रावण को उसने
देख, क्या दशा की मेरी
तुमको बदला लेना होगा
आखिर मैं बहन हूँ तेरी।
रावण पूछे किसने किया ये
बोली मनुष्य दो, धनुष हाथ में
कहते हैं सभी राक्षसों को मारें
सुंदर स्त्री एक उनके साथ में।
रावण की हूँ बहन बताया
करने लगे थे हसीं वो मेरी
खर, दूषण को मारा उन्होंने
इज्जत क्या रह गयी है तेरी।
मर गयें हैं खर और दूषण
सुनके रावण को गुस्सा आया
सोचे कोई मार सके न उनको
क्या भगवान ने ही रची माया।
फिर सोचे भगावन अगर वो
उनसे मरुँ भवसागर तर जाऊं
और अगर वो राजकुमार हैं
जीतूं उन्हें, स्त्री हर लाऊं।