राम सिया संग अवध पधारे
राम सिया संग अवध पधारे
राम सिया संग अवध पधारे,
अब खुशियों की दीप जलेगी...
खुशियों के प्रांगण में हर्षित,
प्रेम तरल से मधु सीप पलेगी...(१)
मानवता हो रहा हताश अब,
कहो निकुंज कब तक महकेगी..
अहंकार के दुत्कार से अब,
निश्चय तड़ित चपला चमकेगी...
डिगने लगे थे जो पांव कभी,
सत्य डगर पग-पग सम्हलेगी..
राम सिया संग अवध पधारे,
अब खुशियों की दीप जलेगी...(२)
लाज हया सब शेष हों प्रभु,
अहंकार मिथ्या अवशेष हों प्रभु..
प्रज्वलित सारे द्वेष हों प्रभु,
भावों में प्रेम प्रीत श्लेष हों प्रभु..
अत्याचार उन्माद मिटाकर,
नन्ही कलि सहर्ष खिलेगी…
राम सिया संग अवध पधारे,
अब खुशियों की दीप जलेगी...(३)
पुष्य नक्षत्र में रौनक आई,
घर-घर में प्रेम की रश्मि छाई..
हॅंसी खुशी सब मेल मिलन,
धन धान्य संपदा संग है लाई..
धनतेरस के पुनीत अवसर में,
निश्चय धन्वंतरि सुवास रहेगी..
राम सिया संग अवध पधारे,
अब खुशियों की दीप जलेगी...(४)
