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Bhavesh Parmar

Abstract Romance

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Bhavesh Parmar

Abstract Romance

राहत ना मिली

राहत ना मिली

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भटकता रहा मैं बंजारों सा कि ख़ुदा की राहत ना मिली,

कितना चाहा था उस बेवफ़ा को की उसकी चाहत ना मिली।


रह गया मैं आवारा कि अब किसी की इबादत ना मिली,

ख़्वाब में आते है वो पर उनको पाने की ख्वाहिश ना मिली।


जुड़ा था मेरा मन बस उनके ही ख़्याल से की रवायत ना मिली,

रूह बन गए थे वो मेरी पर मुझे उनकी आदत भी ना मिली।


सपने जो करने थे पूरे उनके मुझे उनकी इजाजत ना मिली,

याद बनकर रह गए वो मेरी की मुझे उनकी रुसवाई ना मिली।


भटकता रहा मैं बंजारों सा कि ख़ुदा की राहत ना मिली,

कितना चाहा था उस बेवफ़ा को की उसकी चाहत ना मिली।


अब तो भूल चुके है वो मुझे की उनकी नफ़रत ना मिली,

भटकता रहा मैं बंजारों सा की मुझे ख़ुदा की राहत भी ना मिली।


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