ना जानें वो कब आएगी??
ना जानें वो कब आएगी??
यूँ ही तो जिंद़गी के कई साल उनके इंतजार में ही निकल गएं,
पर अब यह बात और इंतजार अपनी हद़ पार करने लगा है।
आख़िर कब तक मुझे यूंह अकेले ही ख़ुद़ को संभालना पड़ेगा,
कोई तो जिसके सिरहानें मैं अपना सिर रख़ सुकुन से सोना है।
यूंह तो आया था कोई मेरी इस अधूरी जिंद़गी पूरी करने के लिएं,
शायद़ मैं पगला उनके जज़्बात समझ ना पाया और अकेला रह गया।
सोचता हूं कि आख़िर कहाँ पर मुझसे ऐसी कोनसी गलती हो गई,
कि वो हो गएं मुझसे इतने रिसवाँ कि मुड़कर एक बार भी मुझे ना देखा।
बार बार ख़ुद़ को अब मैं यह बात समझाता हूं कि लिखा था हमारा मेल,
वरना कोई भी रिश्तें में ऐसे ख़ुद़गर्ज़ होने का भला कोई मतलब़ होता है।
ख़ेर यह बात अब थोड़ी पुरानी लगती है पर बात तो वहीं पर अटकी है,
जिसका इंतजार मैं कर रहा इतने सालों से हूं वो तो मुझे मिला ही नहीं है।
दोस्त भी अब तो मुझे समझते थोड़े पागल है क्योंकि ऐसा कोई नहीं है,
पर उनको क्या पता कि मेरे लिएं तो ख़ुद़ाने कोई खास शख्स़ को बनाया है।
जिसके इंतजार मैं मैंने इतने साल राह देखी है या अभी भी देख रहा हूं,
वो शख्स़ भी तो शायद़ मेरा ही इंतजार इतने सालों से यूंही कर रहा है।
अब देखना है कि हमारी किस़्मत हमें कब और कहाँ पर कैसे मिलाती है,
क्योंकि जिंद़गीं में हमारा मिलना किसी कार्य का आगाज़ होना होता है।