रो देता हूं
रो देता हूं
मुझे नहीं पता कि आख़िर इसकी वज़ह क्या थी और क्या है,
पर नहीं देख़ सकता मैं तुम्हारी इन नशीली आंखों में कोई नमी।
रो लेता हूं मैं भी जब भी देख़ता तुम्हें ऐसे उदास जो तुम रहते हो
ना जानें क्यों ख़लती हैं मुझे तुम्हारी प्यारी आंखों की यह नमी।
बड़ा ही ख़ुदगर्जं और ज़ालिम जमाना कि अब यहां आ गया है,
हँस देते हैं लोग जब देख़ते किसी और को ऐसे उदासी की कमी।
लगता है उन्हें कि आसान है किसी को यूं ही तड़पाना एक खेल है,
पर नहीं जानते वो अनजान कि क्या होती है इन आंखों की नमी।
करता है मन मेरा कि लगाकर गले से तुम्हें कि मैं तुम्हारे साथ ही हूं
कैसे करूं मैं दूर तुमसे कि नहीं देखी जाती तुम्हारी आंखों में नमी,
काश! कुछ़ ऐसा कर देता मेरा ख़ुदा कि दे देता मुझे तेरे सारे ग़म,
बस बनकर रह जाऊं अब मैं तेरा और हो जाएं गाय़ब अब यह नमी।