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Bhavesh Parmar

Inspirational Thriller

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Bhavesh Parmar

Inspirational Thriller

चिंगारी

चिंगारी

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मन में उठे थे कुछ़ सवाल उसका जवाब हैं चिंगारी,

बिना बात या वज़ह के नहीं होते है कहीं कोई हंगामें।


जैसी सोच रखोगे वैसा ही परिणाम देगी यह चिंगारी,

नहीं करते लोग यहाँ ऐसे ही नएँ नएँ रोज़ कारनामें।


जलती भी है और जलाती भी है ऐसी है यह चिंगारी,

अब आप दोस्त बनो या बनो दुश्मन इस ख़ुद़गर्जं जमानें में।


सोता हुआ चुहा हो या हो सोता हुआ कोई एक शिकारी,

बस इतना रख़ना याद़ कि गऱ फ़िसलें तो फ़सोगे तुम जाल में।


सूकुन भी है और इक दहक़ती आग भी है यह चिंगारी,

निर्भर करता ख़ुद़ पर है कि आप कैसे सोचते हो इस समय में।


लगी हुईं थी सबको ना जाने किस बात की अज़ीब सी बिमारी,

जल गएं वो सारे जिसने कि ख़ुद़ को महान समझने की भूल में।


ना देख़ती है वो दिन और ना देख़ती वो रात है ऐसी है चिंगारी,

दिख़ जाएं बुराई तो कर देती है भस्म़ सब कुछ़ बस पल भर में।


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