प्यास मेरी
प्यास मेरी
समुचा साँसों में भरकर
तुम नखशिख मेरे तन को खंगालते रहे
मेरे देह की मिट्टी से चुन चुनकर
अपने दिल की संदूक में
भर रहे हो मेरे वजूद के कतरे.!
मेरे आँचल को आसमां बनाकर
गेशूओं में घटाओं के पर्वत ढूँढते
आँखों से नीलम निकालते.!
मेरी पलकों पर अपने सपने रख दिए.!
गालों की ज़मीन मेरी
तुम्हारे पोरों का आशियां बनी
नाभि में डूबकर तुम मेरे अस्तित्व को
घेरकर कुछ न कुछ अपनाते रहे.!
मेरे नाखूनों की परत पे अपने
होंठों की छाप छोड़े,
एक खुशबू की तलाश में
फिसलते तन का नक्शा मेरा रट
लिया समेट लिया मुझे खुद में.!
मैं बस एक प्यास लिए
बावरी नदी सी खोज रही हूँ
मकाँ की चाह में
तुम में बेकल सा समुन्दर कोई।