प्यारी जिन्नी
प्यारी जिन्नी
वह अक्सर देखती थी स्वप्न ..
जब नींद के घने जंगल में ..
खो जाती थी ...
वह जब थककर चूर होकर,
सो जाती थी ...
तब वह अवचेतन मन की,
गिरफ्त में मस्तिष्क को भी,
पाती थी ...
वह देखती थी फैंटेसी से पूर्ण स्वप्न,
जिसमे उसे मिलता था एक प्यारा सा चिराग़ !
और उस चिराग से निकलती थी प्यारी सी जिन्नी,
जो कुछ ही सैकेंड में कोई भी काम झट से,
निपटाती थी ....
वह स्वप्न में उस जिन्नी से अपने सारे अधूरे ..
काम करवाती थी ...
क्योंकि वह बेचारी स्त्री घर और बाहर दोहरी ..
भूमिका निभाती थी ..
जिन्नी को अपने स्वप्न में देखकर वह,
प्रसन्नचित्त हो जाती थी ..
उसे लगता था जैसे जिन्नी उसी का ही है रूप,
जो उसी की तरह ही झट से पट से काम निपटाती है !
कहीं न कहीं स्वप्न में ही सही वह जिन्नी से ...
असीम शक्ति पाती थी ...
