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Manish Solanki

Romance Tragedy

4.5  

Manish Solanki

Romance Tragedy

प्यार कर के पछताए

प्यार कर के पछताए

3 mins
388


एक अनजानी लड़की से मोहब्बत हो गई

बात चीत ना हुई लेकिन धड़कन मेरी उसकी हो गई।


कुछ वक्त के बाद बात हुई किसी वजह से उससे

बातों बातों में पूरी रात गुजर गई।


कुछ किस्से उसने बताए, कुछ किस्से मैंने सुनाए

किस्सों किस्सों में हमारी मुलाकात भी किस्सा बन गई।


मुझे धीरे धीरे उससे प्यार होने लगा, उसको भी इसका 

थोड़ा सा भान होने लगा।


वो समझने लगी मोहब्बत को मेरी

करने लगी प्यार अब सीरत से मेरी।


कुछ दिनों के बाद एक सुकून सा दिन आया

में गया था मंदिर और खुदा उसे भी वहाँ ले आया।


थोड़ी बाते ज्यादा ही होने लगी हम दोनों के बीच

चर्चे अब बढ़ने लगे थे हमारे बस्ती के बीच।


कुछ वक्त की मुलाकात में सब share हो गया

मेरा नंबर उसको और उसका मुझे मिल गया।


मिलने पर बाते करने वाले अब पूरी रात बाते करने लगे

सोशल मीडिया के chat को अब बातों से भरने लगे।


एक दिन आ गया उससे मैंने प्यार का इजहार कर लिया

उसने हिचकिचाते हुए " हाँ " बोल दिया।


यही गलती हो मेरी मैंने उसको अपना जो बना लिया

मेरे दुख भरे दिन का सिलसिला यही से शुरू हो गया।


वो भी प्यार जताने लगी अब, मुझे भी अपनापन लगने लगा

वो वक्त निकलने लगी अब, मैंने भी वक्त देना शुरू किया।


कुछ वक्त बीत गया हमारा, प्यार भी सच्चा लगने लगा था सारा

लेकिन बात यह खत्म नहीं हुई।


उम्र मेरी भी होने लगी थी, चिंता मेरी मेरे परिवार को भी थी

बस वही एक लड़की थी जिसकी बात मैंने परिवार से छुपाई थी।


घर को मेरे रिश्ते आने लगे, मन मेरा अब थोड़ा सा डरने लगा

बात करूँ उसके बारे में घर में, यही चिंता में वक्त गुजरने लगा।


एक दिन मैंने उससे कहा, रिश्ता आने लगा हे मेरा यहां

उसने कहा सादी कर लेते हे फिर।


मैंने भी हिम्मत जुटाई और घरवालों से बाते की सारी

एक वक्त को चौंक गए सारे, मां मायूस हो गई फिर मान गई।


उस लड़की से मिलाया मैंने सबको,

उसने भी अपने परिवार को दिखाया हमको।


कुछ रस्में शादी के पहले की पूरी हो गई,

सब तैयारी जोरों से शुरू हो गई।


उसने भी मेरी पसंद का लहंगा सिलवाया था ,

मैंने भी उसकी पसंद का सूट बनवाया था।


बात शादी के दिन की आ गई,

धूमधाम से मेरी बारात यहां से निकल गई।


वहाँ भी खुशियां हजार थी, मेहमानों से भरी कतार लंबी थी

वक्त वो आखिर आ ही गया।


मैं मंडप में बैठ गया और,

शास्त्री जी ने भी "कन्या पधरावो सावधान " पुकार दिया।


सब सही था में भी बहुत खुश था, शास्त्री जी ने दूसरी बार पुकारा

कन्या तब भी नहीं आई, और पूरे मंडप में सन्नाटा छा गया।


कुछ लोग और सहेलियां उसकी देखने गई कमरे में उसके

उन्होंने कमरा तब खाली सा पाया।


फोन पे फोन होने लगे सब उलझनों में पड़ने लगे

किसी को कुछ पता नहीं था, क्या सही और क्या गलत था।


मैं तो खामोश सा हो गया था , क्या कमी रह गई प्यार में यही 

खुद से पूछ ने लगा।


उसका मुझे एक मैसेज आया, माफ करना मनीष कह के

खुद को छुपा लिया।


कहने लगी में किसी और को चाहती थी, बाहर था वो शख्स

इसीलिए तुमसे दिल लगाई बैठी थी।


मैंने पूछ लिया उससे रोते हुए, की फिर वो प्यार जताना सब क्या था

उसने उत्तर दिया हंसते हंसते अबे गांव के लड़के

वो सब तो सिर्फ टाइम पास था।


में तो टूट चुका था अंदर से अब, परिवार भी उसका इज्जत हारा था

वापस लोट आई बारात मेरी उसने प्यार का मजाक बनाया था।


कुछ वक्त तक खामोश बन गया था में, सन्नाटे ने मेरे घर

परिवार में जगह बना ली थी।


खुशियां बाटने वाला परिवार, कुछ खामोश हो गया था

उसकी यादों का सिलसिला अब हर पल मेरे दिल में चलने लगा था।


अगर थी उसे किसी और से मोहब्बत तो उसे मुझे पहले बताना था

सिख लिया मैंने उस हादसे से बहुत कुछ।


कुछ वक्त के बाद अब वही वक्त का नजराना था

में खामोश और अकेला हो गया था।


उसका फिर नए लड़के को पटाने का सिलसिला

कायम था।


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