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Manish Solanki

Others

4.0  

Manish Solanki

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क्या फर्क पड़ता है

क्या फर्क पड़ता है

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लिख रहा हूं मैं कहानी अपनी

तुम्है पसंद आए या नही, क्या फर्क पड़ता है?


 पहले से ही बहोत जख्म मिले हैं तुझसे

एक और मिल जाए तो, क्या फर्क पड़ता है?


थी कभी आदत श्याम को तेरे इंतजार की

अब श्याम हो या ना हो, क्या फर्क पड़ता है?


 आदत हो गई है अब शराब की मूझे

मीठे जाम अब मिले या नही, क्या फर्क पड़ता है?


अब आ जाती है नींद मुझे कभी भी 

रात हो या ना हो, क्या फर्क पड़ता है?


छोर दिया है खरीदना गजरा तेरे लिए मेने

अब फूल मुरझा भी जाए तो , क्या फर्क पड़ता है?


 बहुत है मेरे लिए तेरे बेवफाई के सबूत

अब फैसला हो या ना हो, क्या फर्क पड़ता है?


 पसंद नही है फूलो का तेरे लिए खरीदना मूजे

अब वसंत आए या ना आए, क्या फर्क पड़ता है?


 बाते मेने कर दी बया मेरे दिल की

अब तू समझे या नही, क्या फर्क पड़ता है?


जख्मों को सहन कर लेता हु सारे मैं

अब हकीम आए या नही, क्या फर्क पड़ता है?


खुदको दूर कर ही लिया ही अब तुजसे मेने

अब मोत भी आ जाए तो, क्या फर्क पड़ता है?


 बदनाम हो ही गए है तेरे इश्क मैं हम

अब गुनाहगार साबित हो भी जाए, क्या फर्क पड़ता है?


पसंद नही रहा अब घूमना उन किनारों पे तेरे साथ

अब समुंदर सुख भी जाए तो, क्या फर्क पड़ता है? 


नही पसंद मुजे अब चूमना तेरे माथे को

तेरी जुल्फे बिखर भी जाए तो, क्या फर्क पड़ता है?


नही रहा अब उन राहों पे साथ तेरा

मंजिल ना भी मिले तो, क्या फर्क पड़ता है?


 तेरा नाम ही नही रहा है मेरी सांसों मैं अब

धड़कने रुक भी जाए तो, क्या फर्क पड़ता है?


मौजूदगी है ही नही तेरी रास्तों मैं अब 

राहैं सारी धुंधला भी जाए तो, क्या फर्क पड़ता है?


नफरत सी कर बैठा हु इन बारिश से 

अब सावन आए या नही, क्या फर्क पड़ता है?


संभाल लेता हु अब खुदको मैं खुद ही

अब कोय साथ दे भी या नही, क्या फर्क पड़ता है?


तू ही थी जो समेटा करती थी मूजे कभी

अब टूटकर बिखर भी जावू तो , क्या फर्क पड़ता है?


 पसंद ही नही है अब सुनाना गजल किसीको

चुप्पी थाम के बैठ भी जावू तो, क्या फर्क पड़ता है?


बस जिंदा लाश बनके बैठा हु मैं जहा मैं

अब खुद दफन हो भी जावू तो, क्या फर्क पड़ता है?


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