कुछ यूं लिखा मैंने खुद का मंजर.......
कुछ यूं लिखा मैंने खुद का मंजर.......
कुछ यूं लिखा मैंने खुद का मंजर ,
धीरे धीरे चलता रहा मैं
और राहें अपने आप बनती चली गई,
हां आई कुछ रुकावटें रास्तों में कभी
तो कभी चांद की चांदनी में ही रातें कटती गई,
कुछ बयां हमने किया खुद से कुछ
जिंदगी हमें सुनाती गई,
कुछ कुछ खुद सीख लिया जिंदगी में
बहुत कुछ जिंदगी वक्त के साथ सिखाती गई,
कभी कभी अंधेरी खाइयों में वक्त गुजरा है तो
कभी पहाड़ों की चोटियों पे खुद को पाया है,
कुछ कुछ लम्हे में खुद को जाना है
कुछ लम्हे ने जमाने से रूबरू करवाया है,
बातें, मुलाकातें होती रही लोगो से रास्तों में
हमने तो खुद के साथ अपने सफर को जारी रखा है।