एक घर का आसमान
एक घर का आसमान
वो नीला था चारों तरफ बिखरा
कुछ लाल-सा समेट रहा खुद़ में,
वो आस्मां था,चारों तरफ बिखरा
एक बदरी थी जो सिमट रही उसमें
एक रोशनी उस लाल-नीले को
काला कर रही थी,
सब मटमैला हो गया अचानक
जैसे कुछ गलती हो गई उसमें
तमस में जलने लगे भूरे पत्ते
आस्मां फिर हो गया सफेद-काला
रोशनी लाल-पीली
कहीं से रूक-रूक धूआं निकलने लगा
किसी घर का चूल्हा जलने लगा
जिम्मेदारियों ने लपटें पकड़ ली अब
इंतजार इजहार इकरार फिर प्यार
सब परोसा गया कांसे की थाली में
जूठन का ख्याल ही न था
ठहाकों ने हवाओं को कान भर दिए
समां सूकून बाँट रही थी
दीवारों ने चित्र बनाए
वो भी काले
रंग तो बिखर ही गया था बिस्तर पर
उजले सपने समेटे।