STORYMIRROR

Vijendra Dudi

Romance

4  

Vijendra Dudi

Romance

साथ

साथ

1 min
271

ख़्याल सफरभर तुम पर रहा

रातभर चाँद सिर पर रहा।


बचपना है अब भी रात में

कितनी जवानी खत्म कर रहा।


हवाएँ भी साथ देती रहीं

बदन भी मेरा फिर जलकर रहा।


जो गिले सुने थे पत्थर बनकर

इन्तकाम उनसे पिघलकर रहा।


सिमट गयी थी जो तुम मुझमें

अंजाम तुझसे बिछड़ कर रहा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance