साथ
साथ
ख़्याल सफरभर तुम पर रहा
रातभर चाँद सिर पर रहा।
बचपना है अब भी रात में
कितनी जवानी खत्म कर रहा।
हवाएँ भी साथ देती रहीं
बदन भी मेरा फिर जलकर रहा।
जो गिले सुने थे पत्थर बनकर
इन्तकाम उनसे पिघलकर रहा।
सिमट गयी थी जो तुम मुझमें
अंजाम तुझसे बिछड़ कर रहा।