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Vijendra Dudi

Abstract

3.3  

Vijendra Dudi

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मुझ जैसा

मुझ जैसा

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मैं हँसता हूँ आए याद मुझे,

मेरा बात -बात पर रोना

जब हुआ बडा तो सीखा मैनें,

कैसे गम छुपाया करते हैं,

कैसे नाटक रचाया करते हैं

पहले कर देता जो मन किया,

अब मन को समझाया करते हैं

बातों सें बहलाया करते हैं,

रातों को जगाया करते हैं,

तारों को सजाया करते हैं

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मिट्टी में बैठे-बैठे अंगूली से,

सपनों को हकीकत करते हैं,

फिर उन्हें मिटाया करते हैं

तुम भी ये करके देखो,

इस मंच पर चढ़कर देखो,

देखो नया सवेरा पाओगे

वक़्त तुम्हारा बदलेगा,

मुझ जैसे हो जाओगे

फिर बीते वक़्त के सायों को,

रद्दी में फेंक भूल जाओगे,

फिर कभी किसी रोज़

बेबात ही मुस्कुराओगे।



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