मोहब्बत का आगोश
मोहब्बत का आगोश
बखूबी रास आने लगा मोहब्बत का आगोश
पाकर प्रेम मन हर्षा रहा नैना हुए मदहोश
बाहों की ठंडी छांव में मिलता परम संतोष
एक झूठ की दस्तक से पैदा हुआ आक्रोश
छिन्न भिन्न गतिहीन सब है व्याप्त बेहद रोष
पल में हुई समाप्ति जताया अहसान फरामोश।