कुछ रिश्तें ऐसे भी
कुछ रिश्तें ऐसे भी


थोड़ी चोट लगी थोड़ा मरहम लगा
अपनों से अपनों का प्यार व्यापार लगा
दर्द मिला आहें सिसकियाँ सब दबती गई
उजाले में भी हमें घना अंधकार लगा
सतरंगी सपनों की छाया में बैठे थे हम
जिंदगी की ठंडी पुरवाई में क्यों ताप लगा
जब जब जिंदगी हंसी बन कर मुस्कुराई थी
हर उस चेहरे के पीछे हमें एक नकाब लगा
सागर की लहरों की आहट सुनता रहा
आज उसकी आहट से सब तूफान लगा
रुलाने के बाद मनाने का क्या फायदा है
यहाँ तो दिलासा देना ही दिखावा लगा
गलत राह चले तक क्यों ना रोका हमें
राहों के बीच रोकना हमें खुदगर्ज लगा
हर रिश्ते को अपना समझ इतराता था
आज हर रिश्ता पास होकर भी दूर लगा।