पुकारो अभी ( मित्रता दिवस )
पुकारो अभी ( मित्रता दिवस )
वो जो रोज बात करती नहीं ,
वो जो बड़े बड़े उपहार रोज़ लाती नहीं ,
बात पर तुम्हारी जो कहकहे लगाती नहीं ,
तुम जो कहो , सब सुनती नहीं ,
हाथ के इशारे से तुम्हें रोककर ,
सारी कहानी समझाती , वही ,
तुम्हें गलत साबित करने में जो कभी हारती नहीं ,
पर धूप तेज हो तो बातों की छांव देती वही ,
रखती बराबर नजर तुम पर ,
पर, जताती नहीं ..
दोष तुम्हारे सब बतलाती ,
निगाहे चार उठती तुम्हारी ओर ,
भृकुटी तन जाती उसकी
सबसे पहले , चहुँ ओर ।
कहो , क्या वो तुम्हारी परम सखि नही ?
जो है , तो पुकारो अभी ,
मत सोचो ' किस्मत से मिली किस्मत ,
यूं बिगाड़ो नहीं।
