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Amit Kumar

Abstract

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Amit Kumar

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धड़कन

धड़कन

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मेरी खामोशियों के शोर को भला कौन सुनता है

मेरी खामोशी मे आवाज़ नहीं है 

सिर्फ चीखें ही बसती है

यहाँ कहकहों का दौर है चीखें कौन सुनता है

एक ग़ालिब! थे जिन्हें ज़िंदा लाश बना दिया

जहाँ भर की गुरबत ने

जहाँ सुनते हो साज-ए-दिल्

वहाँ फक़ीरो की तानों को भला कौन सुनता है

मिजाज़ है कुछ अल्हदा सा मेरा बस यही फजीहत है

तेरी सुर्ख गालों की तब्बस्सुम् का यहाँ भला कौन नहीं क़ायल

मेरी नजरोँ की गुफ्तगु 

बस एक मेरा दिल समझता है

यह शहर यह दयार यहाँ सब ही जानते है

तवायफ़ की घुँघरू की खनक के आगे 

मीरा की रुबाई भला कौन सुनता है।

खुदा भी पत्थर है सनम भी हुए पत्थर

जहाँ जिसकी खैर मांगी वहीं वो दिल हो गया पत्थर

तुम्हारी खतायें है अमित जो तुम दिल रखते हो

यहाँ पत्थर के नुमाइंदे है यहाँ दिल की धडकनें 

भला कौन सुनता है।

 


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