बेवजह तो कुछ नहीं
बेवजह तो कुछ नहीं


बेवजह तो कुछ नहीं होता,
बेवजह कोई किसी को नहीं खोता,
दिन अपना उजाला खो देती है प्रतिदिन,
तभी तो अंधेरी रात का आना संभव हो पाता।।
बेवजह तो कोई नहीं रूठता,
बेवजह कोई आंसू नहीं बहाता,
साहिल भी तो तभी उदास होता है,
जब दरिया उसे छूकर वापस लौट जाता।।
बेवजह तो कोई चैन नहीं खोता,
बेवजह कोई यूं खामोश नहीं हो जाता,
रात भी तो खामोशी की चादर तभी ओढ़ती है,
जब चांद अपनी चांदनी से दूर बादलों में छुप जाता।।
बेवजह कोई खैरियत नहीं
पूछता,
बेवजह यहां कोई भी रिश्ता नहीं होता,
भंवरा भी तो अक्सर उसी ओर ही जाता है,
जिस ओर उसे खिले फूलों का उपवन नज़र आता।।
बेवजह रिश्तो की डोर नहीं टूटती,
बेवजह अपनेपन की खुशबू नहीं जाती,
कोई फूल भी तो अपना महत्व तभी खो देता है,
जब डाली से कोई तोड़ दे उसे या वो खुद टूट जाता।।
बेवजह कुछ नहीं होता इस संसार में,
बस वज़ह नहीं ढूंढी जाती कभी प्यार में,
किसी भी वज़ह से बढ़कर होती है मोहब्बत,
क्योंकि जहां वजह होती है वहां कभी प्यार नहीं होता।।