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Amit Kumar

Romance

4.5  

Amit Kumar

Romance

क्या बताऊँ वो क्या थी

क्या बताऊँ वो क्या थी

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क्या बताऊँ वो क्या थी,

ख्वाब या अहसास थी।

हाँ एक अहसास थी।

सुबह की अज़ान थी,

आरती का गान थी,

मंदिर की गीता, मस्ज़िद की कुरान थी।


सुबह की लाली वाली

सूरज की मुस्कान थी,

उसके रूठने से,

मेरी दुनिया रुकती थी,

मेरी दुनिया ही नही मेरी पहचान थी।


वो रूठी रहती जब तक,

रूह बेजान रहती तबतक

सब पूछते थे क्या हुआ..

बिन बोले सबके संग्यान थी।

कोई रूठा है, शायद इसकी जान थी।


उसकी आवाज़ मेरे जीने की,

हाँ-हाँ मेरे जीने की आस थी।

कुछ सच्चा कुछ झूठ ही सही,

पर हर घड़ी मेरे साथ थी।


उसको भूलना तो मानो,

रोकना खुद की सांस थी।

जीना उसके साथ ऐसा था,

जैसे कड़वाहट में मिठास थी।


वो ही सुबह थी वो ही शाम थी

वैसे तो बहुत ही खास थी,

पर अब कहाँ है, नहीं मालूम

क्या वो बस एक अहसास थी?

शायद हाँ वो बस एक अहसास थी।


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