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Sheetal Jain

Abstract

4.5  

Sheetal Jain

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प्यार की बोली

प्यार की बोली

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सारस सिखा रहा,

मुझे प्यार की बोली करो

प्यार तो साथ न छोड़ो

प्रेम और समर्पण एक दूजे के पूरक

जो समझ गया ,सार्थक है जीवन 

उदाहरण से वो अपने समझाएँ 


चुन लेता मैं ,जब साथी अपना

नहीं देखता किसी ओर का सपना 

सुख दुख सब मिलकर है सहते 

संकट हो चाहे कितना विकट

जान भले ही दे दे वियोग न सहते 

  

तू तू मैं मैं न समय गवाँते 

जब भी होता मौसम अच्छा 

झूम झूम कर नाच दिखाते 

हर क्षण का आनंद उठाते 

ऋषि मुनि भी हमें आशीर्वाद देते 


पवित्र सौभाग्यदायक हमें बुलाते 

रामायण में यूँ ही न लिपिबद्ध हो जाते 

कभी-कभी हो जाता अपने पर गर्व 

विशालकाय पक्षी मैं ,जातियाँ समेटे अनेक 

नहीं भेदभाव मन में लाता 

पूरे विश्व को अपना घर मानता।

 

तुम इंसान अजीब हो प्राणी 

मेरी शांति नहीं तुम्हें सुहाती

मुझसे मेरा आश्रय छीन रहे 

जंगल भी तुम काटो 

खेतों में भी रसायन डाल रहे 


विकास के नाम पर मार रहे 

मैं विलुप्त प्राय प्राणी सोच रहा 

किस अपराध का दंड पा रहा 

शायद गलती हो गई मुझसे 

तुम्हें प्यार करना सिखा रहा।।


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