MUKESH KUMAR

Romance Fantasy

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MUKESH KUMAR

Romance Fantasy

प्यार के लिए काफ़ी है

प्यार के लिए काफ़ी है

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उसके हुस्न का शबाब मुझे तबाह करने के लिए काफ़ी है

दरिया में अस्बाब फूट जाएंगे जो आंखों के लिए काफ़ी है।


तू मुझे देखे और मैं तुझे देखूं हमेशा वफ़ा के लिए काफ़ी है

ज़माने की तोहमतों से क्या एक दूजे का साथ ही काफ़ी है।


बीमार हो जाऊं वैध को बुला लाना कहीं मैं गुज़र न जाऊं 

मगर दवा को छोड़ तुम दुआओं से ज़िंदा रखना काफ़ी है।


ज़माने ने बहुत सितम दिए मुझे, न चाहते हुए रुलाया है 

मेरे इशारे पर उसका एकदम से रुक जाना ही काफ़ी है।


इश्क़ करते हुए कितनी सदा बीत गई है कुछ मालूम नहीं

मेरे लबों की प्यास वो शौक़–हँसी बुझा दे बस काफ़ी है।


शजर के नीचे उसकी बांहों में नींद बहुत अच्छी आती है

शहर में चलती लारियों के धुएँ से बस बचाव ही काफ़ी है।


आलीशान बंगलों में रहने वाले अक्सर डरपोक होते हैं 

बसर करने के लिए तेरी गली, तेरी दहलीज ही काफ़ी है।


यूँ तो दहर में मक्र–ओ–फ़रेबी लूटने के लिए बहुत घूमे हैं 

ज़ख्म देने के लिए महबूब के तीर–ए–नज़र ही काफ़ी है।


मैं मर भी जाऊं ख़ैर कोई ग़म नहीं है, जाना है एक दिन

वो आख़िरी बार मरने से पहले इश्क़ में देख ले काफ़ी है।


चाँद छुप गया बादलों में बादलों को शर्म भी नहीं आती है

उसका यूँ मेरी तलब में दीद करना प्यार के लिए काफ़ी है।


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