प्यार.. अंतिम पल की पीड़ा..!
प्यार.. अंतिम पल की पीड़ा..!
मैं जानती हूँ
अंतिम पलों की...
उस असह्य पीड़ा को
गूंगे के मीठे फल की तरह
वह अकथ्य भी ..
मेरे अंतिम क्षण में...
शब्द मेरे रोम- रोम में
जिससे अंत की वेदना
मेरे मुख मंडल पर
ना झलके,
बस केवल शब्द...!
उस विराट में विलीन होऊँ
पर...
शब्द के स्मरण से
मेरी पीड़ा,
मेरे लिए आह्लाद हो जाए
वह आँसू भी निकले तो उसमें एक
अविस्मरणीय आह्लाद ही आह्लाद...!
हे शब्द...!
लोग राम या कृष्ण ही तो कहते हैं...?
फ़िर मैं....!
शब्द क्यों नहीं...?