अच्युतं केशवं
Drama
प्यादा फर्जी बन गया,
चलता टेढ़ी चाल।
उसकी ही दुनिया हुई,
जिसके संग था काल।
मन आस तारा
सहज तुमने अपन...
कल लुटेरे थे ...
धूम्रपान कर ब...
छिपा हृदय निज...
उर सहयोगी भाव
भट्टी सी धरती...
अलग हो रूप रं...
आला वाले डॉक्...
भारोत्तोलन खे...
आंखों में नीर भी कह रहा ये शहर इतना झूठा क्यों है ? आंखों में नीर भी कह रहा ये शहर इतना झूठा क्यों है ?
मुझे खुशी होगी तब, जब इस देश से इन शत्रुओं का, नामोंनिशान मिटाकर, आराम से धरती की गोद में, मिट्टी मे... मुझे खुशी होगी तब, जब इस देश से इन शत्रुओं का, नामोंनिशान मिटाकर, आराम से धरती क...
जीवन का दर्शन कराती यह कविता मनुष्य को उसके अस्तित्व के बार में बताती है । जीवन का दर्शन कराती यह कविता मनुष्य को उसके अस्तित्व के बार में बताती है ।
इसीलिए तो वह मेरी बेटी भी है और माँ भी। इसीलिए तो वह मेरी बेटी भी है और माँ भी।
लंका में अग्निकांड भी मैं था लंका में अग्निकांड भी मैं था
एकांत में भी हिन्दी को अपने पास ही पाया... एकांत में भी हिन्दी को अपने पास ही पाया...
ये 'बाबुल' सदा तेरे साथ है, जब-जब याद करेगी, अपने आस-पास ही पाएगी... ये 'बाबुल' सदा तेरे साथ है, जब-जब याद करेगी, अपने आस-पास ही पाएगी...
इस बार सबको अनदेखा कर उनका हाथ थामना जिनको बस अपनों की तलाश है इस बार सबको अनदेखा कर उनका हाथ थामना जिनको बस अपनों की तलाश है
या खुदगर्ज बनके किया खुद से ही प्यार क्या मैं वहां गलत थी ? या खुदगर्ज बनके किया खुद से ही प्यार क्या मैं वहां गलत थी ?
आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।। आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।।
और यही सोच रही है कि कितना कुछ पकाया मैंने इस आंच में। और यही सोच रही है कि कितना कुछ पकाया मैंने इस आंच में।
कभी अपने घर में और कभी बेटे बहू के घर में। कभी अपने घर में और कभी बेटे बहू के घर में।
ना जाने क्या है जो मुझे जाने नहीं देता, एक एहसास है जो तुमसे दूर होने नहीं देता। ना जाने क्या है जो मुझे जाने नहीं देता, एक एहसास है जो तुमसे दूर होने नहीं द...
हाँँ ! वो उड़ना चाहती है उड़ना चाहती है गिरना चाहती है गिरकर उठना चाहती है पर वो रुकना नही चाहती, बस व... हाँँ ! वो उड़ना चाहती है उड़ना चाहती है गिरना चाहती है गिरकर उठना चाहती है पर वो र...
अम्मा क्या गई, कुछ दिनों के वास्ते अपनी अम्मा के घर ! अम्मा क्या गई, कुछ दिनों के वास्ते अपनी अम्मा के घर !
क्यूँकि वो नाजायज़ था क्यूँकि वो नाजायज़ था
इस द्रौपदी की गिरधारी तक काहे ना पहुंचे पुकार है, इस द्रौपदी की गिरधारी तक काहे ना पहुंचे पुकार है,
बच्चों को अच्छा इन्सान बनाऐंगे। हर परिस्थिति का सामना करना सिखायेंगे। बच्चों को अच्छा इन्सान बनाऐंगे। हर परिस्थिति का सामना करना सिखायेंगे।
कभी समय मिले तो, घड़ी दो घड़ी, बेटा, मिलने आते रहना। कभी समय मिले तो, घड़ी दो घड़ी, बेटा, मिलने आते रहना।
मैंने इंसान की जान को कुछ रुपयों में बिकता देखा है मैंने एक हसीन ज़माने को तहस नहस होता देखा है...... मैंने इंसान की जान को कुछ रुपयों में बिकता देखा है मैंने एक हसीन ज़माने को तहस...