पूर्ण चाँद
पूर्ण चाँद
अच्छा बताओ
क्यों
पूर्ण चाँद को
निहारता
संसार है
आज तो
सियार भी
लगाता
गुहार है
अंधेरी
रातों को
यह
किसका
इंतजार है
जाने क्यों
बेबात ही
यह दिल
बेकरार है
धूर्तता है
किस-किसके
कण-कण में
समाहित
क्या
घटित होगा
यह पहले से
है निहित
धूर्त व्यक्ति
पर भरोसा
करना या
ना करना
हर व्यक्ति का
अधिकार है
झूठ बोले जो
कदम-कदम
उसके तो
सच पर भी
ना एतबार है
जाने क्यों
लगाता
आज तो
सियार भी
गुहार है
मन
करता है
उस पर
भरोसा
करने का
यही तो
एक
सच्चे व्यक्ति का
व्यवहार है।
