पूनम--दो शब्द
पूनम--दो शब्द
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जब तुम मुस्करा कर
मेरी बाहों के दरमियाँ समा जाती थी
मेरे दिल के आंगन में चौदवीं का चांद उतर
आता था-
तुम्हारे तृप्त चैहरे में बंद आंखो के बीच
पूनम का चांद नजर आता था-
दिल की अंधेरी राह
तुम्हारे आने से दीवाली सी रोशनी - ए-आफताब में नहा जाती थी-
और रजनीगंधा और रातरानी के फूलों की महक अंतर्मन में महक जाती थी-
तुम्हारे भाल पर चमकते ओस से कण
तारो से नजर आते थे-
तुम्हारे बिना सपनों का आसमां भी अधूरा सा, कानों में कह जाते थे-
शायद यह बेताबी, बेसब्री, बेख्याली
कोई दीवाना ही जानता है-
जो अपने इश्क को ही इबादत - ए-खुदा मानता है-
इसलिये वह चुपके से जब भी यादों
की चांदनी में नहाई नजर आती है-
हर अंधेरी रात पूनम की रात बन जाती है.