पुत्र धरा के नौनिहाल
पुत्र धरा के नौनिहाल
कल कल निनाद से चलते हैं,
किंचित विषाद नहीं रखते हैं।
प्राणों की बलि देकर अपने,
बन जाते आँख के तारे हैं।
मात वसुंधरा होती निहाल,
ये पुत्र धरा के नौनिहाल।
रक्ताभ सजल दृग वक्ष विशाल,
हैं ये पुत्र धरा के नौनिहाल।
अनत विनत हो जायें रिपुदल,
छिन्न-भिन्न हो भ्रमित विकल।
हाथों में दुश्मन के मौत की गोली है,
देखो रणबांकुरों की आई टोली है।
अजगर सी बाहें हैं इनकी,
और फौलादी सीने हैं।
अरिसंहारक जोशीले ये
जिन्हें देख दुश्मन के छूटे पसीने हैं।
मन में इनके जोश भरा,
कदमों में सारा विश्व पड़ा।
देख कर इनका दृढ़ संकल्प,
महाशक्ति कर जोड़ खड़ा।
सावधान हो जाएं रिपुदल,
एक कदम न आगे बढ़ने पाये।
शेष न ही अवशेष मिलेगा,
जग में ये रिपुसूदन अरिहंत कहाये।
शत्रु क्षरण की सौगंध लिये,
ये मातृभूमि पर वारे हैं।
रक्त की अंतिम बूँद बूँद तक,
सीमाओं को संवारें हैं ।