पूंजी
पूंजी
पूंजी इक शब्द छोटा सा
अर्थ इसके अनेकानेक,
लोगों की क्या बात करूँ
बदले अर्थ हर व्यक्ति विशेष।
किसी की पूंजी है रे पैसा
किसी की पूंजी मात-पिता
किसी की पूंजी मीत-सखा
किसी की पूंजी बड़ों की सेवा।
किसी का खजाना सत्कर्म
किसी का खजाना पापकर्म
किसी के पास ज्ञान का भंडार
कोई है अनपढ़ बेबस लाचार।
सब पूंजियों से बढ़कर
अनमोल खजाना चरित्र का
एक बार जो लुट गया
न मुड़ आता जीवन भर।
जीवन के हर पड़ाव में
पूंजी के अर्थ बदल जाते
करोड़पति मात-पिता भी
बच्चों की झलक तरस जाते।
वक्त पहिया जब चलता
हर पूंजी पीछे रह जाती
रुपया पैसा यहीं रहता
दवा संग दुआ काम आती।
सत्कर्मों की गठरी भर लो
यही पूंजी सबसे है खास,
चरित्र पर कभी दाग न आए
बढ़ाओ देश व परिवार का मान।
