STORYMIRROR

Sumit. Malhotra

Abstract Action

4  

Sumit. Malhotra

Abstract Action

एक रेशमी धागे ने ही।

एक रेशमी धागे ने ही।

1 min
264

दोस्तों चंचल मन को बांधा तो एक रेशमी धागे ने ही, 

हँसते हँसाते बंधना ख़ुद तोड़कर सारे बंधन ये हमने। 


क्या देखें कभी हमने पंछियों के पास कोई भी नक्शे,

जो होते इतने माहिर कि ढूंढ लेते रास्ते बिना ये नक्शे। 


प्राणवायु ना दिखती फिर भी जीवन उसी से ही चलता,

भाई हो कितने दूर-दूर फिर भी राज़ बहनों का चलता।


चाहे ये नन्हे हो या मझले हो या हो फिर वो बड़े भैया,

बड़े चाव से बहनों से राखी तुम सभी ने भी बंधवाना।


टूटे ना ये रिश्तों का धागा मज़बूती से रखकर निभाना, 

प्यारे-दुलारे भाइयों राखी के बंधन को हमेशा निभाना।


जिनकी कोई सगी बहन नहीं उनसे भी पूछकर बताना, 

रक्षाबंधन, भाईदूज पर कैसे महसूस हो पूछकर बताना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract