ध्यान मुद्रा
ध्यान मुद्रा
स्वयं की खोज ही आत्मज्ञान कहलाती,
सत्य का कराती बोध
एक बिंदु पर ध्यान लगाओ तो जानो
क्या झूठ-सच में भेद।।
मीन की आँख बने केंद्र बिंदु जब,
माया-छाया न टिकती देर
अंकुर फूटता तब ज्ञान प्रकाश का
निर्माण ब्रह्माण्ड का होता देख।।
ज्ञान पाने के होते दो ही रास्ते,
गुरू से या खुद से सीखते देख
पर सच्चा ज्ञान तुम्हे खुद ही मिलेगा
तेरी जो खुद से कराता भेट।।
कट जाओगे तब जग-संसार से,
जब स्वयं को अंतर्ध्यान में खोते देख
प्रकाशित होगा तन-मन ज्ञान से
तो पाओ विभिन्नता में सत्ता एक।।
धुल जायेगा मैल दिल से,
हृदय में दोष न रहेगा एक
निर्मल-निश्छल जीवन होगा
तब कष्ट न रहेगा एक।।
कोई न वस्तु अप्राप्तय होगी,
हर पल प्रशंसा-प्रसिद्धि में बढ़ोत्तरी देख
जग जीवन से मन ऊब जायेगा
स्वयं को तब ध्यान में डूबा देख।।
