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Amar Tripathi

Others

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Amar Tripathi

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मुझे क्या पता था अमर त्रिपाठी

मुझे क्या पता था अमर त्रिपाठी

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तोड़ देगा ओ गरूर मेरा मुझे क्या पता था ।

जिस जहर को पानी की तरह पीता रहा, 

वह मुझे राख बना देगा, मुझे क्या पता था।

मैं मंदिर और मस्जिदों में घूमता रहा 

मेरा ख़ुदा मुझ में था, मुझे क्या पता था।

मोहब्बत के बाजार में नफरत के बीज बोता रहा।

मंज़िल तो इंसानियत थी, मुझे क्या पता था ।

कभी जमीन, कभी असमान, कभी चाँद पर ढूंढता रहा,

मंज़िल मेरी मेरे साथ थी, मुझे क्या पता था।।

बस इतनी थी दुनिया मेरी, मुझे क्या पता था।

मौत का सामन जेबों में लेकर घूमता रहा,

खूबसूरत जिंदगी मेरे सामने थी, मुझे क्या पता था।।

समझाती रही वो मुझे, मनाती रही वो मुझे,

मैं अपने धुन में जीता रहा, मधुशाला में बैठ रोज पीता रहा,

जिंदगी यूं खत्म हो जाएगी, मुझे क्या पता था।।


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