याद आ रहा है।
याद आ रहा है।
अल्हड़ मन फिर याद कुछ करने लगा।
वर्तमान में भूतकाल को तकने लगा।
वह मुस्कुराना वह हंसना वह दोस्तों की भरमार।
ना मोबाइल ना टीवी, खूब मिलता था माता-पिता और दादा-दादी का प्यार।
बढ़िया से पकवान सब घर में ही बनते थे।
मां दादी बुआ के खाने का स्वाद ही हम चखते थे।
गाजर के हलवे और लड्डू भी बनते थे।
घर का सारा काम भी हम मजे लेकर ही करते थे।
वह प्यारा सा झगड़ा वह प्यारा सा प्यार।
वह पेड़ों पर चढ़ना वह नदी में तैरना।
किसी के भी घर में खाना खा लो नहीं था कोई विचार।
ना कोई अंकल ना कोई आंटी,
दादा दादी चाचा चाची या थे मौसा मौसी।
बुआ और जीजी का घर आना भी लगता था त्योहार।
बहुत से रिश्तों की थी तब भरमार।
सबके खाने के लिए मां, दादी डालती थी बहुत सा अचार।
रात की बासी रोटी भी अचार के साथ आज के ताजे खाने से भी अच्छी लगती थी।
रूस जाते तो मां कैसा मनुहार करती थी।
अब ना आएंगे वह गुजरे जमाने
वह लोग पुराने अब मिलेंगे कहां?
यादों में जो जिया है जीवन वह सच में कहां?
अल्हड़ मन फिर कुछ याद करने लगा।
मैं बैठा यहां हूं अब वह जमाने कहां ?
