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Arunima Bahadur

Action

4  

Arunima Bahadur

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बंद चहारदीवारी

बंद चहारदीवारी

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बंद चहारदीवारी में रख,

बस एक मूरत बना दिया,

डोर मेरी बस खुद थाम,

मुझे कठपुतली बना दिया,

कभी सुरक्षा के नाम,

कभी मर्यादा के नाम,


बस अधिकारों से वंचित किया,

कभी पराया धन कह,

पल पल तिरस्कृत किया,

कभी गृह वधु बना,

बस परदों में कैद किया,

स्वतंत परिंदा मैं भी थी,


पर पग पग सोने का पिजरा दिया,

मैं भी एक अबोध नारी,

न समझी किसी कैद को,

बस रूप रंग की प्रशंसा से

मोहते रहे मन को,

पर कितना और कब तक,

मैं केवल कोई देह नही,


अस्तिव्य हैं कुछ मेरा,

कुछ चाहत भी,

अपनी ही पहचान की,

चाहत मेरी भी गगन,

एक स्वछंद उड़ान की,

न चाहती में कोई बेड़ी,

न सोने का पिंजरा भी,


चाहती हूं सम अधिकार,

समानता की चाहत भी,

पर तुम न तोड़ोगे ये बेड़िया,

मुझको ही ये तोड़ना हैं,

कैद में रहते रहते,

दायरा मैंने बनाया है,

तोड़ूंगी ये दायरा,


और ये पिजरा भी,

बहुत बिगाड़ा इस धरा को तूने,

अब मैं बनाऊँगी,

अब हर बेटी बेटी,

सशक्त मैं बनाऊँगी,

आज बदलनी ये सोच भी मैंने

कि चहादीवारी में सुरक्षित नारी हैं,

जाग जाये जो हर नारी,

फिर हर दुष्टता पर भारी हैं।


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