मेरे सपने
मेरे सपने
मेरे सपने मेरे अपने हैं,
खुली आँखों से देखती हूँ।
सदैव यथार्थ में जीती हूँ,
अपने दम पर सब करती हूँ।
ज्यादा की कभी चाह नहीं,
कम कभी भी मिला ही नहीं।
माँ-पापा ने भी जो सोचा,
वे व अपनों को साकार किया।
सपने सभी सुनहरे लिए,
चादर से बाहर ने फैलने दिया।
प्रभु की असीम कृपा रही,
ज्ञान विरासत में खूब मिला।
सपनों की कोई सीमा नहीं,
बस यथार्थ की धरा पर बुने।
जब रोटी कपड़ा और मकान जरूरी,
तब स्वप्न सुनहरे उन्हें करें पूरें।
स्वप्न भी जरूरी है जब आगे बढ़ना है,
ख्याल यही सब अपने दम पर करना है।
अपनों का साथ सदा देना,
स्वार्थ सिद्धि के लिए कभी न छोड़ना।
स्वयं पर विश्वास, है मेरे सपनों नींव,
सपनों की सम्पूर्णता सत्कर्मों पर है टिकी।