मूकदर्शक
मूकदर्शक
बढ़ती हैवानियत और मूक दर्शक भी बढ़ते जा रहे हैं।
गलत को गलत और सही को सही कहने की बजाए
बैठकर वीडियो बना रहे हैं।
लुटती मानवता है, गलत देखकर भी यदि खून में तुम्हारे उबाल नहीं।
मृतात्मा हो तुम कोई जीवित इंसान नहीं।
मानवता शर्मसार होती है
जब संस्कार सड़क पर लुटते हैं।
खलनायक का दुस्साहस देख,
नायक के मुंह क्यों छुपते हैं।
मृत्यु का आना निश्चित है तुम उसे रोक ना पाओगे।
अनचाहे कायर बन कर
तुम भी पाप कर्म का हिस्सा बन जाओगे।
जानता था जटायु रावण से वह कभी युद्ध में जीत ना पायेगा।
लेकिन यदि रहा मूक दर्शक तो सबको मुंह कैसे दिखाएगा।
द्रोपदी की राज सभा के मूक दर्शकों से भी ज्यादा सम्मान जटायु पाते हैं।
अंत समय भी श्री राम जी से ही अपना दाह संस्कार करवा पाते हैं।
हे मानव मानव बन कर मानवता का ही विस्तार करो।
देवत्व प्राप्त करने धरती पर आए हो,
नहीं पशुता का व्यवहार करो।
