सोचो जरा....
सोचो जरा....
ये पागल मन कभी कभी बहक जाता,
न जाने किस सोच में डूबता ही रहता,
कभी खुद को कोसते हुए बड़ बड़ाता
कभी फिर वो अपनी नसीब को पूछता,
कभी दूसरों की ओर देखता ही रहता,
कभी अपने दोस्तों की फिर सलाह लेता,
बार बार बीते हुए कल को देखता,
वो तो कल था, आज का क्या पता,
समय तो अपने आप चलता ही रहता,
किसी का इंतजार वो तो कभी नहीं करता,
सोचो जरा, फिर क्यूँ तुम घबराता?
चार दिन की ये जिन्दगी मिली हमें,
मिलता है ढेर सारे खुशियाँ और गम,
कभी कभी ये आँखें होती यूँ नम,
कभी वो पी जाते हमारे सारे गम,
वो तो देखता है सारे बीते हुए लम्हे,
दोस्त तो दोस्त होते क्या कहेंगे तुम्हें,
नसीब का क्या दोष? क्यूँ कोसता उन्हें?
समय भी कहता है, जरा देखो हमें,
पाना खोना क्यूँ सताता है अब तुम्हें?
सोचो जरा, छोड़ो वो बीते हुए लम्हे,
सोचो जरा, आज के साथ चलना है तुम्हें।