आरंभ
आरंभ
यह प्रकृति बहुत खूबसूरत है
सदैव मुस्कुराती रहती है
किसी नव यौवना की तरह।
इसमें रोज हजारों अंत,आरंभ हैं
हजारों पौधे रोज जन्म लेते हैं
नये विचार, नई सोच की तरह
और हजारों ही पौधे रोज मरते हैं
तमन्नाओं, ख्वाहिशों की तरह।
पर प्रकृति ना शोक मनाती है
ना रुकती है ना थकती है
वह आज मैं जिंदा रहती है
कुछ पौधे स्वयं उग आते हैं
स्वत: आये हुए अवसर की तरह
कुछ पौधे हमें लगाने होते हैं
शुभ नया श्रेष्ठ कार्य करने की तरह
जिसे कभी तो आरंभ करना ही होगा।
कब तक टालमटोल करते रहेंगे
कब तक इच्छाओं के जंगल में भटकते रहेंगे
कामनाओं का वन अनंत है
सुंदर सुंदर फूल मन लुभाते हैं
पथ से डिगाते हैं, लक्ष्य से हटाते हैं
पर स्मरण कर उसका जिसके अंश हैं हम
उसी की ओर चलना आरंभ तो कर
सारी ऊर्जा, परिश्रम, विचार झोंक दे
पहुंचेगा एक दिन मंजिल पर, विश्वास कर
उसकी ओर बढा एक कदम आरंभ है
कामनाओं से मुक्ति का, मोक्ष का।