भावनाओं का पिंजरा
भावनाओं का पिंजरा
कहते चार दिन की ही ज़िंदगी,
चार दिन की चाँदनी रातें होती।
जीवन बीत गया व्यर्थ ये सारा,
जीवन अमूल्य न मिले दोबारा।
हम सभी की ज़िंदगी में ज़रूरी,
पढ़ना लिखना बहुत है ज़रूरी।
लेखनी से प्यार कर के दिखाना,
कितना सुकून मिलता दिलदारा।
लिख कर अपनी भावनाएँ सही,
प्रकट करके सुकून मिलता यहीं।
लिखकर यह अपना क्रोध गुस्सा,
भावनाओं का पिंजरा बंद करना।