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Kavita Sharma

Tragedy

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Kavita Sharma

Tragedy

पुरूष हूं....

पुरूष हूं....

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मैं पुरुष हूं, शायद इसीलिए 

रोने का सामने नहीं है हक

पुरूष हूं आंसू आंख में ला नहीं सकता

कमजोर स्वयं को कहला नहीं सकता

दर्द से गुज़रता हूं आहत भी होता हूं

पर आंसू कहीं आंखों में छिपा लेता हूं

अकेले बहा कर मन हल्का कर लेता हूं

पुरूष होने से पहले इंसान हूं

भावनाओं में में भी बंधा हूं।


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