पुराना ख़त
पुराना ख़त
मैंने आज यादों का सन्दूक खोला, उसमें से निकला इक पूराना झोला।
अरे, देखूँ तो इक झलक, ये तो है कोई पूराना ख़त।याद आया वो ज़माना,जब इस ख़त को लेकर बाक्स में था डाला, ना जाने क्या दिल ने दिमाग से कह डाला,हाथ डाल लेकर बाक्स में फिर से ख़त बाहर निकाला।
हाँ.... पड़ता था मेरे साथ खारिज में इक लड़का भोला-भाला, ताकता रहता था हर पल मुझको, मरता था मुझ पर दिलों-जान से, मैं भी तो थी दिवानी उसकी, हिम्मत कर के इक दिन मैंने ये प्रेम -पत्र उसको लिख डाला।
मेरे दिलबर, मेरे जानी,तुझ बिन मेरी अधूरी कहानी। मेरे दोस्त, मेरे हमदम, भरती हूँ हर पल तेरा दम। मेरे राँझणा, मेरी माही, तुझ बिन सूने मेरे दिन और रातें, आन मिलो चाँदनी रात में, तारों की छाँव में करेंगे गुपचुप बातें। दिन-रैना देखूँ बस इक ही सपना, मोरी डोली कब ले जाओगै तुम अपने अँगना। जब भी तुम सामने आते, धक से मेरा धड़क जाता दिल,तेरी नज़दिकियाँ पाने को तड़फ़ रहा है ये दिल।
जी चाहता तुम से कह दूँ सब कुछ, पर बँधी हूँ लाज की बेड़ियों में, तुम्हें तो कोई रोक नही है, तुम तो कह दो हाले -दिल। तुम को मुझ से लगाव नहीं या मैं तुम्हारे लायक नहीं, ग़र तुम मुझको हो चाहते, फिर क्यों नहीं तुम ये मुझ से कहते।....ना तुमने कुछ कहा, ना मैंने कहा, प्यार हमारा अधूरा रहा, आज पुराना ख़त ये देख कर, हरे हो गये ज़ख्म सारे, कुछ-कुछ यादें ताज़ा हैं अभी, कुछ खो गई समय की गर्त में।
