पत्र जो लिखा मगर...
पत्र जो लिखा मगर...
उसमें वो बातें थीं जो हमेशा से कहनी थी तुमसे,
वो रातों की कहानी भी जिसमें टूटे तारों से मन्नत में था तुझको मांगा।
मेरी सहेलियों का तेरे नाम से पुकारने के किस्से ,
मेरी बहनों के तुम्हें जीजा कहने की शरारत।
और ये भी जिक्र था उसमें कि कैसे हुए थे फना तेरे इश्क़ में ,
बग़ैर तेरी इजाज़त के और किस तरह चौथ के उपवास थे निभाए।
खामियाजा मेरी गलती का तूने कितना ज्यादा दे दिया,
उम्र भर का रिश्ता था जो तूने पल भर में तोड़ लिया।
आज भी लिखना चाहती थी वो सारी रातो की सिहरन जो
आंसू से भीग जाने पर गर्म शरीर पर भाप सी बन जाती थी।
पर दास्तां कहेंगे तुमसे मिलकर वो सारी जो लिख लिख कर मिटा दी है,
और पूछनी भी है तुमसे कि तुमने सजा किस किस बात की मुझे दी है।