पत्नी रूठी जग रूठ गया
पत्नी रूठी जग रूठ गया
पत्नी क्या रूठी जग ही रूठ गया
कोई समंदर में होकर भी सूख गया
कैसा होता पत्नी का रिश्ता नाता है,
इसके फेर में हर रिश्ता ही भूल गया
भरी दुपहरी में वो शीतल रहता है
नदी में होकर भी वो प्यासा रहता है
विधि विडंबना है, पुरुष कठोर होकर,
भीतर ही भीतर जोर से रोता रहता है
पत्नी क्या रूठी जग ही रूठ गया
पत्थर होकर भी तड़-तड़ टूट गया
पत्नी के दर्दोगम ए सितम में साखी,
वो फांसी को झूला समझ झूल गया
ये पत्नी का दर्द बड़ा ही गज़ब है
आदमी फूलों का शूल बन गया
पत्नी क्या रूठी जग ही रूठ गया
आदमी शीशे की भांति टूट गया