पता था न !
पता था न !
प्रिय
तुम्हारे दी हर
दुखती याद के बावजूद,
हमारे लिए मैंने
तुम्हें हमेशा अच्छा इंसान कहा।
तुम्हारा यूँ अच्छा इंसान कहा जाना
जरूरी है तुम्हारे प्रति
मेरी श्रद्धा को।
तुम जानते हो
श्रद्धा आदत है मेरी
हृदय स्वभाव से दास्य है मेरा।
प्रेम का अंकुर तो
जाने कब पड़ा
निकला और भर गया
हृदय हरी पीली पत्तियों से
अब इस पतझड़ में
श्रद्धा ही है जो उनको चुनती है।
तुम्हें पता था न
में हमेशा तुम्हें अच्छा इंसान कहूंगी।

