प्रयास
प्रयास
भूले भटके
आया था जब मैं
तेरे द्वार
अतिंम बार
न लौटने की कसमें
खाकर
तुमने कातर नेत्रों से
कहा था
स्वार्थी हो गये हो तुम
लालच लिप्सा के
वशीभूत हो गये हो तुम
जिस मिट्टी पर खड़े होकर
चलना सीखा
बढ़ना सीखा
दुत्कार कर चले गए तुम उसे
कभी याद तक नहीं आई उसकी
हांं हां स्वार्थी हो तुम!
सिर्फ जीते हो खुद के लिए
तुम्हारे नन्हे नन्हे पांवों की थिरकन
किलकारी मारती अल्हड विंदास
आवाज़ों को बिसरा गये तुम
तुम स्वार्थी बनकर निपट
अपनी अलग दुनिया बसा गये!
आज फिर आये हो
महामारी काल में
लौटने को नहीं कहेंगे
स्वागत करेंगे तुम्हारा
ये मिट्टी जिसकी गंध में ही
अपनापन है
आश्वस्त करते हैं
तुम्हारी पहचान इसी मिट्टी से है
आओ भूल जाओ
कि तुम छोड़ गये थे
इन सूनी गलियों को
असहाय
चौबारे अब भी प्रतीक्षारत हैं
आठों याम
भूल गये हम कि तुम स्वार्थी थे
फिर से इस सूनेपन को
करने के लिए खड़े हैं गांव के गांव
फिर वही ठसक
फिर वही खनक
फिर वही सनक
फिर वही धमक
वही हुडके की थाप
वही हुडका बौल
वही छौल्याट-बौल्याट
वही नौले वही पोखर
गाय बैल बकरी
आवाज़ दे रहे हैं
बांसुरी की धुन पर ग्वाले
लोकधुन में
तुम्हें
ज्योति पुंज थामे!
मेरा मौन मुझे धिक्कार रहा
अंदर का ज्वालामुखी फट रहा
मैं भौचक्का खड़़ा देख रहा
सूने घरों को
खंडहरों में तव्दील होते हुए
जहां मुझे क्वारंटीन होना है
कांपती खंखारती बलगम की
दूध दही में नहाई देह को
अट्टहास करतेे पर्वत श्रृंखलाओं को
भूस्खलन भूू-माफिया
शराब माफिया की मार से
घायल नदियों के मौन को
पक्षियों ने फिर
घोंसले बनाये हैं
और मैं तिनका तनका
समेट कर जोड़ने लगा हूं
मैने अपना प्रवास
स्थायी प्रयास में बदल दिया है!
